नाम मिथिला (Name Mithila)
विदेह माथव द्वारा मिथिला के प्राचीन भू-भाग पर आर्यों के बसाये जाने के बाद यहाँ इस राजवंश के अनेक राजाओं ने राज्य करते हुए अपने साम्राज्य का विस्तार किया । सूर्यवंशी निमि प्राचीन मिथिला के प्रतापी राजा थे । इनकी वंश -शृंखला इस प्रकार थी---- -----
सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु, उनके पुत्र इक्ष्वाकु, इक्ष्वाकु के पुत्र निमि ।
'शत्पथ ब्राह्मण' ग्रंथ के अनुसार, राजा इक्ष्वाकु को पुरंजय और निमि नाम के दो पुत्र थे । पुरंजय अयोध्या और निमि मिथिला(विदेह) राज्य को ग्रहण किये । इसी निमि के अति प्रतापी और लोकप्रिय पुत्र मिथि के नाम पर इस भू-भाग का नाम 'मिथिला' पड़ा ।
'विष्णुपुराण' एवं 'श्रीमद्भागवत' में इस प्रसंग विस्तार से वर्णन मिलता है । इसमें कथा प्रसंग इस प्रकार है.............
एक बार इक्ष्वाकु पुत्र निमि को यज्ञ करने की अति तीव्र इच्छा हुई । वे यथाशीध्र यज्ञ कराने हेतु गुरु वशिष्ठ को आग्रह किये । वशिष्ठ को इन्द्र भी यज्ञ कराने हेतु पूर्व में ही निमंत्रित किये हुए थे । इस कारण वशिष्ठ निमि के आग्रह को इस शर्त्त के साथ स्वीकार किये कि जब तक वे (वशिष्ठ) इन्द्र का यज्ञ सम्पन्न कराकर वापस नहीं आ जाते हैं तब तक निमि उनकी प्रतीक्षा करेंगे ।
निमि गुरु वशिष्ठ के वापस लौटने की प्रतीक्षा करने लगे ...... । वशिष्ठ को इन्द्रपुरी से लौटने में देर हो गई । जब बहुत दिन बितने के बाद भी वे नहीं लौटे तो निमि ने गौतम ऋषि की अध्यक्षता में यज्ञ आरम्भ करा दिया । यज्ञ अभी चल ही रहा था कि वशिष्ठ भी इंद्रपुरी से वापस हो यज्ञ कराने हेतु पहुँच गए । अपनी अनुपस्थिति में यज्ञ होता देखकर वे अत्यधिक क्रोधित हुए और वे राजा निमि को शाप दे दिए------"सद्यो विदेहो भव" ----अभी तुरंत देह रहित हो जाओ .... ।
जब वशिष्ठ का क्रोध शांत हुआ तो वे सोचने लगे कि इनका अपुत्र मरना उचित नहीं है, तो वे निमि को जीवित करने का प्रयास करने लगे ....। यज्ञ में उपस्थित गौतम व अन्य सभी महर्षिगण निमि के मृत शरीर को मथने लगे जिससे निमि का अपने पुत्र मिथि के रूप में नवअवतरण हुआ । आगे चलकर मिथि बहुत ही प्रतापी एवं लोकप्रिय राजा हुए । इनके ही नाम पर विदेह प्रदेश को 'मिथिला' कहा जाने लगा ।
'मिथिला' शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में पाणिनि लिखते हैं----
"मिथिलादयश्च मध्यंतेत्र रिपवो मिथिलानगरी"
-----मिथिला वह देश है जहाँ शत्रु मथे (दमन किए ) जाते हैं ।
'उपादि सूत्र' के अनुसार,
"मथ्यन्ते रिपवो यत्र सा मिथिला"
------'मिथिला' शब्द की उत्पत्ति 'मंथ' धातु से हुई है। इसका अर्थ है कि जहाँ शत्रु का मंथन हो अथवा शत्रु पराजित हो ।
पाणिनि और उपादि सूत्र की ये व्युत्पत्ति वैसे तो काल्पनिक प्रतीत होती है, किन्तु मिथिला के शौर्य का ऐतिहासिक साक्ष्य प्रमाणस्वरूप उपलब्ध है । 'वाल्मीकि रामायण' में सीरध्वज जनक (सीता के पिता) द्वारा संकाश्य पर विजय वर्णित है । और 'महाभारत' से सूचना प्राप्त होती है कि तत्कालीन मिथिलेश महाभारत की लड़ाई में योद्धा के रूप में सम्मिलित हुए थे ।
शस्त्र के साथ शास्त्रविद्या में भी मिथिला विजेता की तरह रहा है । यहाँ के विद्वानों ने सदैव विजय पताका फहराया है ।
वैसे मिथिलाभूमि का 'मिथिला' नाम अति प्राचीन है । 'वाल्मीकि रामायण' मिथि के नाम पर मिथिला के नामकरण का समर्थन करता है .....।
.......अगले अंक में हमलोग मिथिला के 'तीरभुक्ति' (तिरहुत) नामकरण को खंगालने का प्रयास करेंगे........धन्यवाद !
✍️ ------डॉ. लक्ष्मी कुमार कर्ण
अतिशोभन...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद....!
हटाएंबहुत नीक लागल भाईजी अपन मिथिला के बारे में पैढ के ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुद लाभप्रद जानकारी भेटल
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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