आर्यावर्त्त में मिथिला की अवस्थिति (Location of MITHILA in ARYAVARTA)

 

        .......... आज इस अंक में हम जानने का प्रयास करते हैं कि आर्यावर्त में प्राचीन मिथिला की अवस्थिति कहाँ रही है ........


      महान आर्यावर्त्त में पवित्र मिथिला की अवस्थिति पारंपरिक रूप से इस प्रकार मानी जाती रही है ----


         उत्तर में हिमालय

         दक्षिण में गंगा

         पूरब में कौशिकी

         पश्चिम में गण्डकी


   'वृहदविष्णुपुराण' (5वीं शताब्दी) के मिथिला माहात्म्य-खंड में इसकी परंपरागत सीमा विवरण है, जो उपर्युक्त तथ्य को पुष्ट करता है। इसमें अंकित संस्कृत पद का मैथिली अनुवाद कवीश्वर चन्दा झा ने इस प्रकार किया है -------


  गंगा बहथि जनिक दक्षिण,  पूर्व कौशिकी धारा 

 पश्चिम बहथि गण्डकी, उत्तर हिमवत बल-विस्तारा ।

 कमला त्रियुगा कृतिका धेमुड़ा वागमती कृतसारा

 मध्य बहथि लक्ष्मणा प्रभृति से मिथिला विद्यागारा ।।


             मिथिला की उपर्युक्त सीमा में समय-समय पर परिवर्तन से इन्कार नहीं किया जा सकता है। प्राचीन विदेह वंश जब तक प्रबल रहा,  उपर्युक्त सीमा लगभग-लगभग स्थिर रही। किंतु, इस वंश की शक्ति क्रमिक रूप से क्षीण होने के साथ ही इसकी सीमा में अंतर आता चला गया । ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी में वज्जी महाजनपद की स्थापना के साथ ही विदेह जनपद इसके अंतर्गत आ गया । इस भू- भाग पर वैशाली के लिच्छवियों का शासन रहा । स्वाभाविक रूप से इस अवधि में इसकी स्वतंत्र सीमा-रेखा नहीं मिल रही है। 

   किंतु, ये तथ्य इतिहास में अवश्य अंकित है कि वज्जी संघ की सत्ता हिमालय से गंगा के उत्तरी तट तक थी। अर्थात इस समय तक नेपाल का भी क्षेत्र इसके अन्तर्गत था। 

    मिथिला के खण्डवला कुल के महाराज म.म.महेश ठाकुर तक मिथिला की परंपरागत सीमा लगभग - लगभग वही रही । 1557 ई. में मुगल सम्राट अकबर ने महेश ठाकुर को मिथिला का भू-विभाग शासन करने और राजस्व वसूली के लिए दान में दिया था। 

दान-ताम्रपत्र में इस तिरहुतराज (मिथिला) की सीमा इस प्रकारअंकित है ----


         "अज कोष ता गोस व अज गंग ता संग"


  -------- अर्थात कोष (कोसी) से गोस (गण्डकी) तक और गंग (गंगा) से संग(पत्थर यानी हिमालय) तक।

   

   बहुत आगे चलकर मुगलशासन काल में ही मिथिला के उत्तरी भाग को नेपाल के राजाओं ने अपने अधीन कर लिया। जिससे प्राचीन मिथिला का भाग  वर्त्तमान नेपाल के रौतहट, सरलाही, सप्तरी, मोहतर  मोरंग आदि जिले का क्षेत्र पारंपरिक मिथिला से कट गया।


 अंग्रेजों के शासनकाल में 1907 ई. में प्रकाशित 'मुजफ्फरपुर  गजेटियर' में 'तिरहुत' (मिथिला) का सीमांकन उत्तरी भाग में नेपाल अधिकृत क्षेत्र को छोड़ते हुए संशोधित करते हुए अंकित है -----


 "तिरहुत, अर्थात गंडक और कोसी के बीच पश्चिम से पूर्व और उत्तर से दक्षिण तक उप हिमालयी जंगल और गंगा के बीच का क्षेत्र।"


दरभंगा गजेटियर 1907 ई. के अनुसार,


   "इसमें चंपारण के वर्तमान जिले, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, , भागलपुर का हिस्सा और पूर्णिया और नेपाल के अंतर्गत आने वाले तराई शामिल हैं जो इन जिलों और हिमालय की निचली श्रेणियों के बीच स्थित हैं।"

       कुछ नामचीन भाषा वैज्ञानिकों ने मिथिला का सीमा निर्धारण भाषाई आधार पर करने का प्रयास किया है। भारतीय भाषा सर्वेक्षणकर्ता जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है ........

     "प्राचीन मिथिला जनपद की भाषा को अब भोजपुरी द्वारा पश्चिम से बलात बेदखल कर दिया गया है, समझिये कि उसी की प्रतिक्रिया में प्रतिशोध के रूप में मैथिली गंगा पार कर मुंगेर और भागलपुर जिला के गंगा के दक्षिणी हिस्से को हस्तक्षेपशील कर ली है। इतना ही नहीं। यह पूर्वाब में कोशी को पार कर सम्पूर्ण पूर्णिया जिला को अपनी दखल में ले ली। "


    उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मिथिला की सीमा सशक्त विदेह राज के अधीन उत्तर में हिमालय पर्वत, दक्षिण में गंगा, पूरब में कोशी और पश्चिम में गण्डक नदी को छूती रही। कालांतर में अन्य वंशों के शासनकाल में इसके सीमाय क्षेत्र में कुछ परिवर्तन आया जो आज भी परिलक्षित होता है।


संदर्भ ग्रंथ :


1.मैथिली साहित्यक इतिहास - डॉ. जयकांत मिश्र

2. मैथिली साहित्यक इतिहास -डॉ. दुर्गानंद झा 'श्रीश'

3.  मैथिली साहित्यक इतिहास- डॉ. बालगोविंद झा 'व्यथित

4. मिथिला तत्व विमर्श - म.म. परमेश्वर झा

5. लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया - जार्ज ए. ग्रियर्सन



                                 ✍️ ---- डॉ. लक्ष्मी कुमार कर्ण





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