पुरुष परीक्षा (PURUSH PARIKSHA)
'पुरुष परीक्षा' जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें पुरुष के पौरुष को विभिन्न कसौटियों के माध्यम से परखा गया है ...। संसार में कितने प्रकार के पुरुष होते हैं और उनके क्या-क्या लक्षण होते हैं, ये उदाहरण कथा के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है, जो काफी रोचक है ...।
'पुरुष परीक्षा' में वर्णित कथाओं का ऐतिहासिक महत्व भी है। इसमें महमूद गजनवी से लेकर इस ग्रंथ के रचनाकाल (15 वीं शताब्दी) तक के कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रसंग का वर्णन है ।
संस्कृत में रचित उपदेशात्मक कथा-साहित्य में सर्वप्रथम आचार्य विष्णु शर्मा रचित 'पंचतंत्र' का नाम आता है, जो काफी लोकप्रिय रहा है। पशु-पक्षी के माध्यम से मानव - जीवन का सर्वांगीण विश्लेषण इसमें बड़े ही रोचक ढंग से किया गया है। अमेरिका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में 'पंचतंत्र चेयर' भी बना हुआ है।
संस्कृत कथा-साहित्य की दूसरी अनमोल कृति है - नारायण पंडित रचित 'हितोपदेश' । इसकी प्रसिद्धि व महत्व के संबंध में संस्कृत साहित्येतिहास के प्रकाण्ड पंडित मैकडोनल ने जानकारी दी थी कि यह अंग्रेजी में अनुदित होकर इंग्लैण्ड के प्रत्येक स्कूल के पाठ्यक्रम में निर्धारित है।
संस्कृत कथा-साहित्य परम्परा की तिसरी अमूल्य निधि है - विद्यापति विरचित 'पुरुष परीक्षा'।
इस ग्रंथ की रचना महाकवि विद्यापति ने मिथिला के तत्कालीन राजा महाराजा शिव सिंह की आज्ञा से की थी।
'पुरुष परीक्षा' का रचना-उद्देश्य :
1. नवमति बालक को नीति का परिचय देना ।
2. रसिका नागरिका का मनोरंजन ।
3. राजनीति की जटिलताओं का उदाहरण सहित स्पष्टीकरण ।
4. बोलने की कला को गुणशाली बनाना ।
5. कथा-रस का चमत्कार दिखाना ।
इसका रचना-उद्देश्य वैसे तो बहुत कुछ पंचतंत्र-हितोपदेश जैसा ही है किंतु, ये वर्णन उपर्युक्त नीतिकथाओं में जहाँ पशु-पक्षी के चरित्र, काल्पनिक कथा और अद्भुत और अस्वाभाविक चरित्र घटनाओं का वर्णन है, वहीं 'पुरुष परीक्षा' में मानवीय चरित्र जो बहुत कुछ तथ्यमूलक है, बड़ी स्वाभाविकता और रसात्मकता के साथ उल्लिखित है। इसका रचना उद्देश्य का दूसरा विंदु - 'रसिका नागरिका का मनोरंजन' इसको उपर्युक्त दोनों नीतिकथा ग्रंथों से अलग करता है।
'पुरुष परीक्षा' चार परिच्छेद में विभाजित है ----
1. वीर 2. सुबुद्धि 3. सविद्य 4. पुरुषार्थ
चारों परिच्छेदों में कुल मिलाकर 44 छोटी -बड़ी कथाएँ हैं जिसमें कुछ ऐतिहासिक, कुछ जनश्रुतिक और कुछ समसामयिक घटनाओं पर आधारित हैं। सभी कथाएँ काफी रोचक हैं और कथा के अंत होते-होते संबंधित प्रकार के पुरुष की प्रकृति स्पष्ट हो जाती है ... परिणामत: पाठक की दृष्टि पुरुष को पढ़ने में स्वाभाविक रूप से सक्षम हो जाती है ...... इसकी कथाएँ पाठक को स्वयं को भी अवलोकित करने को मजबूर करता है, साथ ही अपनी प्रकृति स्वीकारने को प्रेरित करता है…।
'पुरुष परीक्षा' की भूमिका-कथा इस प्रकार है -----
चंद्रतपा नगरी में पारावार नाम के राजा थे। उनकी एक कन्या थी जिसका नाम पद्मावती था। पद्मावती विवाह योग्य हो गयी थी। राजा पारावार ने सुबुद्धि मुनि से पूछा कि - "पद्मावती के लिए कौन-सा वर करूँ ?"
इस पर सुबुद्धि मुनि उत्तर दिए--- "पुरुष वर कीजिए।"
पारावार इस उत्तर से चकित हुए और बोले - "जो पुरुष नहीं है, वो वर कैसे हो सकता है ?"
मुनि अपने कथन को और स्पष्ट करते हुए बोले - "महाराज-संसार में बहुत पुरुष केवल पुरुष के आकार को ग्रहण किए हुए हैं, ऐसे पुरुषाभास को छोड़कर जो वास्तव में पुरुष कहाने योग्य हैं, उससे अपनी कन्या का विवाह कीजिए ।"
राजा बोले --- "ऐसे पुरुष को कैसे पहचाना जाए ?"
तब सुबुद्धि मुनि अनेक कथाओं के माध्यम से संसार के विभिन्न प्रकृति के पुरुषों के बारे में बताए जो 'पुरुष परीक्षा' में कुल 44 कथाओं के माध्यम से समेटा गया है ...।
15 वीं शताब्दी की इस विशिष्ट रचना के महत्त्व को देखते हुए 1815 ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज के अध्यापक हरप्रसाद राय ने इसका बंगला अनुवाद किया । लार्ड विशप टर्नर के परामर्श से 1830 ई. में राजा कालीकृष्ण बहादुर ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया था। प्रख्यात भाषाविद जार्ज ग्रियर्सन ने इसकी प्रस्तुति अंग्रेजी में सारगर्भित भूमिका के साथ की। इतना ही नहीं 'पुरुष परीक्षा' अंग्रेजी शासन की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा इंडियन सिविल सर्विसेज (ICS) के पाठ्यक्रम में पाठ्य-पुस्तक के रूप में शामिल रही है। आगे चलकर इसके कई संस्करण विभिन्न विद्वानों के संपादकत्व में कई भाषाओं में प्रकाशित हुए।
(सहायक ग्रंथ - पंडित सुरेंद्र झा 'सुमन' द्वारा संपादित विद्यापतिकृत 'पुरुष परीक्षा', प्रकाशक-मैथिली अकादमी, पटना वर्ष - 1988)
✍️ --- डॉ. लक्ष्मी कुमार कर्ण
Sir aur blog post kijye
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