कहानी मिथिला में राजसत्ता की ( STORY OF SEIGNIORY IN MITHILA)
...........आइये जानने का प्रयास करें .......मिथिला में किसकी रही है राजसत्ता....... .........प्रस्तुत 'अंचल मिथिला' सीरीज के 'मिथिला तेरे कितने नाम' शीर्षक आलेख में हमने जाना कि अति प्राचीन काल में मिथिला प्रक्षेत्र एक आरण्यक एवं दलदली भू-भाग था, जिसका विदेध माथव नामक आर्य ने अग्नि से संस्कार कर इसे आर्यों के बसने योग्य बनाया । इसी विदेध (विदेह) माथव के नाम पर मिथिला में प्रथम सत्ता के रूप में विदेहवंश की राजसत्ता कायम हुई । ये राजसत्ता लगभग 3000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक चली । इस वंश के निमि, मिथि व सीरध्वज जनक (सीता के पिता) आदि अति प्रतापी राजा हुए । सीरध्वज जनक को 'भोग में योग' के प्रणेता के रूप में जाना जाता है । सम्पूर्ण भोग-विलास, ऐश्वर्य की उपस्थिति के बावजूद वे एक योगी की भाँति रहते थे । धन-वैभव व साम्राज्य के प्रति उनकी कोई विशेष आसक्ति नहीं थी । सीरध्वज जनक के बाद के उत्तराधिकारियों पर भी इस आध्यात्मिक चिंतन का व्यापक प्रभाव पड़ा । जिस कारण सामरिक दृष्टिकोण से सेना के संगठन पर विदेह राजाओं द्वारा अधिक ध्यान नहीं दिया गया । फलतः शनैः-शनैः व