मिथिला की भौगोलिक अवस्थिति (Geographical location of Mithila)

  





  ............इस अंक में हम जानने का प्रयास करते हैं कि मिथिला विश्व मानचित्र में कहाँ अवस्थित है, तथा इसकी धरती का निर्माण भौगोलिक रूप से किस तरह हुआ...............


    विश्व मानचित्र में वर्तमान मिथिला करीब-करीब 25डिग्री से 27डिग्री उत्तर अक्षांश तथा 84डिग्री से 87डिग्री पूर्व देशांतर मध्य अवस्थित है । पराम्परागत रूप से इसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा, पूरब में कोशी एवं पश्चिम में गण्डक मानी जाती रही है  ।


     मिथिलांचल की धरती के निर्माण के संबंध में भूवेत्ताओं ने जो मत व्यक्त किया है वह इस प्रकार है -----

   मिथिलांचल भारतीय प्रायद्वीप का उत्तर-पूर्वी  हिस्सा है, जो 'कैंब्रियन कल्प' से ही सागर तल से ऊँचा रहा है । यह एक असंबलन खंड है,  जहाँ 'तृतीय महाकल्प' के उपरांत जलोढ़ निक्षेप से मैदान क़ा निर्माण हुआ है ।


    कैम्ब्रियन कल्प   :    60 करोड़ वर्ष पूर्व

 (गोंडवाना काल    :    22 - 60 करोड़ वर्ष पूर्व)

   तृतीय महाकल्प  :   4 करोड़ से 7 करोड़ वर्ष पूर्व


  


       मिथिलांचल की धरती काफी नई है । भू-वैज्ञानिकों केे अनुसार, सम्पूर्ण भारत में इस भू-भाग का निर्माण सबसे अंत में हुआ है । इस संदर्भ में मत है कि आज से 1लाख वर्ष पहले यहां एक समुद्र था जो हिमालय और विंध्य पर्वतमालाओं के बीच अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ था । कालक्रम में पृथ्वी तल में आए  परिवर्तनो से इस समुद्र का अस्तित्व समाप्त हो गया । 


    ........आइए अब मिथिलांचल की मिट्टी के संबंध में जानने का प्रयास करते हैं .........


      हिमालय प्रसूत नदियों से बहकर आनेवाली मिट्टियों के संचय से ये भूमि बनी है । इसलिए यहाँ कोई पर्वत या पथरीली भूमि नहीं है । इसकी मिट्टी परम उर्वरा एवं कोमल है । यहाँ छोटी-बड़ी नदियों का जाल बिछा है । इसलिए इसे नदी-तट का प्रदेश 'तीरभुक्ति' कहा जाता है । अंकनीय है कि जितनी अधिक संख्या में नदियाँ मिथिलांचल में पायी जाती है उतनी भारत के किसी अन्य प्रदेश या अंचल में नहीं पाया जाती ।  शायद इसलिये इस भू-भाग को 'नदियों का नैहर' भी कहा जाता है । 


    प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में इन नदियों में नेपाल के जलग्रहण क्षेत्र से विपुल मात्रा में जलराशि पहुँचती है । जिस कारण सम्पूर्ण मिथिलांचल में भयंकर बाढ़ आ जाती है । हर वर्ष की ये बाढ़ यहाँ धन-जन की व्यापक क्षति पहुँचाती है । 


   एक ओर जहाँ ये नदियाँ प्राकृतिक प्रकोप ले उपस्थित होती है, वहीं इनके द्वारा हिमालय से बहाकर लायी गयी ताजी नरम-मुलायम मिट्टी यहाँ की भूमि को अति उपजाऊ बनाती है । साथ हीं , इस प्रक्षेत्र के भू-गर्भीय जल के स्तर को भी उत्तम बना कर रखती है । इन नदियों के कारण हीं यहाँ का जल अत्यंत पतला एवं मीठा होता है । गर्मी के दिनों में जहाँ देश के अन्य भागों में पानी के लिये हा-हाकार रहता है,  वहीं यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की सहज उपलब्धता रहती है ।


                 :         ---डा. लक्ष्मी कुमार कर्ण



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